

KARNPISACHINI SADHANA
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Karn Pishachini Sadhana. Do not practice Karn Pishachini’s sadhana at home because she is a tamasic goddess, and with such a sadhana or worship, the worship of your Ishta Devata (personal deity) or Kul Devata (family deity) cannot be performed in the house. The meaning is that two swords cannot remain in the same sheath. Karn Pishachini does not do such things as people say—that she can bring you anything, make you disappear, or shower money. Do not get caught up in such useless talk. She is the goddess of our Kundalini Shakti, which is awakened, and by meditating on the mantra, a sound will come in your ears which can tell you about the person in front of you. But this also depends on whether you have practiced this sadhana under proper guidance or not. There are many methods and mantras of this sadhana, and I am going to tell you some of those mantras and methods.
कर्ण पिशाचिनी साधना। कर्णपिशाचिनी की साधना घर पर न करें क्योंकि यह एक तामसिक देवी है और इस तरह की किसी भी साधना या पूजा से घर में आपके इष्ट देवता, कुल देवता की पूजा नहीं हो सकती। कहने का तात्पर्य यह है कि एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं। कर्ण पिशाचिनी कोई ऐसा काम नहीं करती, जैसा लोग कहते हैं कि यह कुछ भी लाकर दे सकती है या आपको गायब कर सकती है या पैसे की बरसात कर सकती है। इन बेकार की बातों में न पड़ें। यह हमारी कुंडलिनी शक्ति की देवी है जिसे जागृत किया जाता है और मंत्र का ध्यान करने से आपके कानों में आवाज आएगी जो आपको सामने वाले के बारे में बता सकती है। लेकिन यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि आपने सही मार्गदर्शन में यह साधना की है या नहीं। इसे साधना की कई विधियाँ और मंत्र हैं, उनमें से कुछ मंत्र और विधि मैं आपको बताने जा रहा हूँ।
SHABAR MANTRA
चले पिशाचिनी कर्ण विराजे
कर्ण पर जाकर भेद बतावे,
पिये मंद की धार–लैऔ भोगन अपना
करो हमारा साथ मेरी बातों का भेद नहीं बताओगी
तो कर्ण पिशाचिनी नहीं कहलावेगी,
मेरा कहा काटे तो भैरों नाथ का चिमटा बाजे,
औघड़ की आन निरंकार की दुहाई,
सत्य नाम आदेश गुरु का।
MANTRA
ॐ नमः कर्णपिशाचिन्यै अमोघ सत्यवांदिनी।
मम कर्ण अवतरावतार अतीतानागतवत्स्थितानि।
दर्शय मम भविष्यं कथय कथय ह्रीं कर्णपिशाचिन्यै।’
विनियोग
‘ॐ अस्य श्री कर्णपिशाचिनी मंत्रस्य,
पिप्पलाद ऋषिः, निचृद् गायत्री छन्दः,
कर्णपिशाचिनी देवीता, ममाभीष्ट
सिद्धयर्थे जपे विनियोगः॥’
ध्यान–स्मृति
‘ॐ चितासनस्थानंर मुण्डमाला,
विभूषितामार्ग मणीन् कराभ्याम्।
प्रेतास्रनेत्रैर्धवतां कुवस्त्रां,
भजामहे कर्णपिशाचिन्यै साम्पुः॥’
कर्णपिशाचिनी साधना विधि
सबसे पहले मैं साफ बता दूँ कि यह साधना कोई खेल नहीं है। इसे घर पर करना बिल्कुल मना है, क्योंकि यह एक तामसिक साधना है। इस साधना के लिए श्मशान, जंगल या कोई ऐसा स्थान चुनना चाहिए जहाँ कोई विघ्न न पहुँचे।
साधना अमावस्या की रात या कृष्ण पक्ष की अष्टमी/चतुर्दशी को करना उत्तम माना गया है। साधक को काले ऊन के आसन पर बैठकर उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके साधना करनी चाहिए।
सामग्री में घी का दीपक, काले तिल, सरसों, लौंग, कपूर और लाल या काले फूल होने चाहिए। सबसे पहले गणेशजी, गुरु और भैरवनाथ की पूजा करनी चाहिए, उसके बाद ही कर्णपिशाचिनी का आह्वान करना चाहिए।
मुख्य साधना में दीपक जलाकर बैठना है और कर्णपिशाचिनी का शाबर मंत्र या बीज मंत्र जपना है। यह जप 108 बार, 1008 बार या फिर 1.25 लाख बार तक भी किया जाता है, यह गुरु की आज्ञा और साधक की क्षमता पर निर्भर करता है। साधना करते समय कानों में अलग-अलग प्रकार की ध्वनियाँ सुनाई दे सकती हैं, यही इस साधना का असली फल है।
जब साधना सिद्ध होने लगती है तो साधक के कानों में फुसफुसाहट सुनाई देती है, कभी स्त्री स्वर से मार्गदर्शन मिलता है और सामने वाले के बारे में स्वतः जानकारी प्राप्त होने लगती है।
पर यह सब केवल तभी संभव है जब साधना सही मार्गदर्शन में, पूरी श्रद्धा और अनुशासन के साथ की जाए। बिना गुरु दीक्षा के यह साधना करना खतरनाक है। गलत तरीके से करने पर साधक को भय, मानसिक भ्रम और बाधाएँ घेर सकती हैं।
इसलिए मैं यही कहूँगा कि कर्णपिशाचिनी साधना का असली उद्देश्य धन, वस्तु या चमत्कार पाना नहीं है। यह साधना हमारी कुंडलिनी शक्ति को जगाने वाली साधना है, जो साधक को श्रवण शक्ति प्रदान करती है, ताकि वह सूक्ष्म स्तर पर बातें सुन सके और जान सके।
कर्ण पिशाचिनी साधना के दौरान आप किसी अन्य देवी-देवता की पूजा न करें और अपनी पत्नी या किसी भी स्त्री से संबंध न रखें। मन को पवित्र रखें। साधना के बारे में किसी को न बताएं। यदि कोई परछाई दिखाई दे तो शांत रहें। किसी देवी-देवता का मंत्र भय से न बोलें। ऐसा करने पर पिशाचिनी नाराज हो जाएगी और चली जाएगी। इसके बारे में या प्रतिदिन होने वाले अनुभव के बारे में गुरु के अलावा किसी और को बताने पर मानसिक, आर्थिक और शारीरिक हानि हो सकती है। तामसिक पद्धति में आप भोजन में मांस का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन किसी भी प्रकार की बलि नहीं देनी है, न पशु की, न फल की। शराब का सेवन नहीं करना है, केवल खुशबू के लिए एक चम्मच मात्रा में लें और वस्त्र पर लगाएं।