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श्री नृसिंह पूजन

SHRI LAKSHMI NARSHIMA YANTRA

ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्। नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम्॥

हिंदी अनुवाद:

 

"जो उग्र हैं, वीर हैं, जो महाविष्णु हैं, जो अपनी ज्वाला से सभी दिशाओं में प्रकाशित हैं। उन नरसिंह भगवान को, जो भीषण होते हुए भी भक्तों के लिए मंगलकारी हैं और मृत्यु के भी मृत्यु हैं, मैं उन्हें नमन करता हूँ।"

1. शुद्धि एवं संकल्प

  • स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।

  • संकल्प लें:
    “ॐ विष्णोः प्रसादसिद्ध्यर्थं सर्वाभीष्टसिद्ध्यर्थं नृसिंहपूजनं करिष्ये।”

  • 2. ध्यान (Dhyāna)

  • उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम् ।
    नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युर्मृत्युं नमाम्यहम् ॥

  • विनियोग (Vinayoga)

  • ॐ अस्य श्रीनृसिंहमहामन्त्रस्य प्रह्लादऋषिः,
    पंक्तिछन्दः, नृसिंहदेवता,
    क्ष्रौं बीजम्, नमः शक्तिः, स्वाहा कीलकम्,
    मम सर्वाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥

     

  • 3. करन्यास (Kara-nyāsa)

  • (हाथों पर मंत्र स्थापित करना)

  • ॐ नृसिंहाय अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।

  • ॐ महाविष्णवे तर्जनीभ्यां नमः ।

  • ॐ ज्वलन्ताय मध्यमाभ्यां नमः ।

  • ॐ सर्वतोमुखाय अनामिकाभ्यां नमः ।

  • ॐ भीषणाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।

  • ॐ भद्राय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।

  • 4. अङ्गन्यास (Aṅga-nyāsa)

  • ॐ नृसिंहाय हृदयाय नमः ।

  • ॐ महाविष्णवे शिरसे स्वाहा ।

  • ॐ ज्वलन्ताय शिखायै वषट् ।

  • ॐ सर्वतोमुखाय कवचाय हुं ।

  • ॐ भीषणाय नेत्रत्रयाय वौषट् ।

  • ॐ भद्राय अस्त्राय फट् ।

श्री नृसिंह स्तुति

नमस्ते नरसिंहाय प्रह्लादाह्लाददायिने ।
हिरण्यकशिपोरस्य विदारणाय विभवे ॥ १ ॥

नमः सिंहाय शूरेश महादैत्यभयंकर ।
प्रह्लादपालक श्रीमान् सर्वलोक नमस्कृत ॥ २ ॥

त्वं जगत्सृष्टिकर्ता च पालकः संहरस्तथा ।
त्वं धर्मः परमः साक्षात् त्वं ज्ञानं परमं प्रभो ॥ ३ ॥

त्वं भक्तानां परित्राता दुःखशोकविनाशकः ।
त्वं शत्रुसंघहारश्च भक्ताभीष्टप्रदायकः ॥ ४ ॥

त्वया दत्तं सुखं नित्यं प्रह्लादस्य महात्मनः ।
त्वया नाशितदैत्येन्द्रः सर्वलोकभयंकरः ॥ ५ ॥

त्वमेव सर्वदेवानां देवदेवो महेश्वरः ।
त्वं वराहो महावीर्यस्त्वं वामनपुरंदरः ॥ ६ ॥

त्वं रामो रघुनाथश्च त्वं कृष्णो मधुसूदनः ।
त्वं हृषीकेश गोविन्दो वासुदेवो जनार्दनः ॥ ७ ॥

त्वं नृसिंहः परं ब्रह्म त्वं नारायण ईश्वरः ।
त्वं त्रैलोक्यनाथो देवः भक्तानां पालनाय हि ॥ ८ ॥

नमः करालवदनाय दंष्ट्रायै तेजसां निधये ।
नमः कराल नखायै च दैत्यदेहविदारिणे ॥ ९ ॥

त्वं शरण्यं त्वमेवैकं त्वं गत्याऽन्यन्न विद्यते ।
त्वं प्रसन्नो यदि भूयाः सर्वं सिद्ध्यति मे प्रभो ॥ १० ॥

इति स्तुत्वा नरसिंहं भक्तानां सर्वकामदम् ।
सर्वपापविनाशं च सर्वाभीष्टप्रदायकम् ॥

 

शास्त्रों में वर्णित है कि नृसिंह हवन

भय, रोग, शत्रु एवं तंत्र-बाधा को नष्ट करने वाला और साधक को सिद्धि प्रदान करने वाला होता है।

सबसे पहले साधक प्रातःकाल स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनकर पूर्वमुखी अथवा उत्तरमुखी आसन पर बैठे। आसन कुशा या ऊन का होना श्रेष्ठ माना गया है। साधक को व्रत का पालन करते हुए मन, वचन और शरीर से शुद्ध रहना चाहिए।

हवन प्रारम्भ करने से पहले संकल्प करना आवश्यक है — “ॐ अस्मिन्नेव हव्यकुण्डे श्रीनृसिंहदेव प्रीत्यर्थं, सर्वाभीष्टसिद्ध्यर्थं, शत्रु-विनाशार्थं, सर्वदुःखनिवारणार्थं हवनं करिष्ये।”

इसके बाद करन्यास, अङ्गन्यास और ध्यान करें।

ध्यान श्लोक है “उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्। नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युर्मृत्युं नमाम्यहम्॥”

अब हवनकुण्ड में आम्र, पीपल या पलाश की लकड़ियों से अग्नि प्रज्वलित करें और अग्निप्रणाम मंत्र बोलें —

ॐ अग्नये स्वाहा, ॐ सोमाय स्वाहा, ॐ अग्निसोमाभ्यां स्वाहा। इसके बाद आहुति देना प्रारम्भ करें।

मुख्य बीज मंत्र है — “ॐ क्ष्रौं नमो भगवते नृसिंहाय स्वाहा।”

प्रत्येक आहुति में थोड़ी-थोड़ी हवन सामग्री और घी अर्पित करना चाहिए। इसके साथ नृसिंह गायत्री मंत्र से भी आहुति दी जा सकती है —

“ॐ नृसिंहाय विद्महे वज्रनखाय धीमहि, तन्नो सिंहः प्रचोदयात् स्वाहा।”

विशेष रूप से शत्रु निवारण हेतु यह आहुति दी जाती है

 “उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्। नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युर्मृत्युं नमाम्यहम् स्वाहा॥”

आहुति संख्या हवन की शक्ति और फल तय करती है। सामान्यतः 11, 21 अथवा 51 आहुति साधारण पूजन में दी जाती हैं। 108 आहुति नित्य हवन के लिए उत्तम है। परंतु शास्त्रों के अनुसार सिद्धि प्राप्ति हेतु 1008 आहुति अनिवार्य मानी गई है।

नृसिंह बीज मंत्र “ॐ क्ष्रौं नमो भगवते नृसिंहाय स्वाहा” की 1008 आहुति देने वाला साधक निश्चित रूप से सिद्धि प्राप्त करता है।

अंत में पूर्णाहुति दी जाती है। इसमें नारियल, पान, सुपारी, पुष्प, तिल, गुड़, कपूर और घी मिलाकर अग्नि को अर्पित किया जाता है। पूर्णाहुति का मंत्र है —

“ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते स्वाहा॥”

इसके बाद शांति पाठ किया जाता है —

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः ।
सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ।
मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

श्री नृसिंह कवचम्

यह विष्णुयामल तंत्र में वर्णित है

श्रीप्रह्लाद उवाच –

नृसिंहकवचं वक्ष्ये प्रह्लादेनोदितं पुरा ।
सर्वरक्षाकरं पुण्यं सर्वोपद्रव नाशनम् ॥

सर्वमंगलमाङ्गल्यं भक्तानामभयप्रदम् ।
सर्वविजयमावह्नं सर्वरक्षा विदायकम् ॥

अस्मिन्कवचे श्लोकेषु महावीर्यपरायणः ।
महाविष्णुः प्रियतमे सदा तिष्ठति भूतले ॥

पूर्वतः पातु महावीर्यः महाविष्णुश्च दक्षिणे ।
प्रत्यङ्मां पातु सर्वज्ञो नृसिंहः पातु ईश्वरः ॥

ऊर्ध्वं पातु महाविष्णुः अधः पातु धराधरः ।
सर्वाङ्गे पातु मे नित्यं नृसिंहो रक्षरूपधृत् ॥

सिंहनादं महाघोरं महादैत्यभयंकरम् ।
वज्रनखं पातु नित्यं नृसिंहः सर्वतो मम ॥

सर्वायुधधरः पातु नृसिंहो मे सदा विभुः ।
भयान्नः पातु लोकानां सर्वेषां मे हृदि स्थितः ॥

य एतन्नृसिंहस्य कवचं धारयेत्सुधीः ।
सर्वत्र विजयी स्यात्सर्वत्र त्रिदिवोत्तमः ॥

सर्वरक्षाकरं पुण्यं सर्वोपद्रवनाशनम् ।
यः पठेत्प्रयतः शुद्धः स सर्वत्र विजायते ॥

भूतप्रेतपिशाचाद्याः दैत्यराक्षसमानवाः ।
दूरं गच्छन्ति ते सर्वे कवचस्य प्रसादतः ॥

ग्रहभूतपिशाचाश्च चोरव्याघ्रादयस्तथा ।
दूरं गच्छन्ति ते सर्वे नृसिंहस्य प्रसादतः ॥

य इदं पठति नित्यं कवचं सर्वकामदम् ।
त्रैलोक्ये विजयी नित्यं धनधान्यसमन्वितः ॥

 

फलश्रुति

  • इस कवच का नियमित पाठ करने वाला साधक –

    • सभी प्रकार के भय, रोग और शत्रुओं से सुरक्षित रहता है।

    • उस पर भूत-प्रेत, ग्रह-दोष, तांत्रिक प्रयोग आदि का प्रभाव नहीं होता।

    • राज्य, धन, यश और विजय की प्राप्ति होती है।

श्री नृसिंह हवन सामग्री

श्री नृसिंह हवन में पवित्र, शुद्ध और सात्त्विक सामग्री का प्रयोग अत्यंत आवश्यक है। मुख्य सामग्री के रूप में आम्र (आम), पीपल या पलाश की समिधा, शुद्ध गौ घृत और कपूर का उपयोग किया जाता है। आहुति हेतु मिश्रण में तिल (काले-सफेद), जौ, अक्षत (हल्दी से पीले किए चावल), सुपारी के टुकड़े, इलायची, लौंग, दालचीनी, गुड़ और थोड़ी-सी शहद की बूँदें डाली जाती हैं। पूजन और सुगंध के लिए चंदन, अगरू, धूप तथा हवन सामग्री (बाज़ार से प्राप्त) का प्रयोग श्रेष्ठ है। पुष्प और पत्र में तुलसी दल (जो भगवान नृसिंह को विशेष प्रिय है), बिल्वपत्र, आम्रपल्लव और पीले पुष्प (जैसे गेंदा) का उपयोग करना चाहिए। पूजन सामग्री में कलश (जल से भरा हुआ, आम्रपल्लव और नारियल सहित), पान, सुपारी, लौंग, इलायची, रोली, हल्दी, दूर्वा, दीपक, धूप और नैवेद्य (फल-मिठाई) शामिल हों। विशेष रूप से शत्रु निवारण के लिए आहुति में सरसों के दाने, पीली सरसों, लाल मिर्च और गुग्गुल का प्रयोग भी शास्त्र सम्मत है। अंत में पूर्णाहुति के लिए नारियल, पान, सुपारी, कपूर, गुड़, गंध और पुष्प का अर्पण करना आवश्यक है।

  • यदि हवन शत्रु निवारण या बाधा निवारण हेतु है तो इस मिश्रण में पीली सरसों, लाल साबुत मिर्च और गुग्गुल भी मिला सकते हैं।

  • यदि हवन सौभाग्य और समृद्धि हेतु है तो केसर, मिश्री, सूखे मेवे और शहद की थोड़ी मात्रा मिलाना शुभ है।

श्री नृसिंह स्वामी की दिव्य कृपा आपके घर और व्यवसाय में

क्या आप चाहते हैं कि आपके घर और कारोबार में हमेशा सुख-शांति, समृद्धि और सफलता बनी रहे? क्या आप नकारात्मक ऊर्जा, बाधाएँ और अनचाहे संकटों से मुक्ति पाना चाहते हैं? इसका सरल और प्रभावी उपाय है — श्री नृसिंह स्वामी की मूर्ति का विशेष पूजन।

हम आपके लिए नृसिंह स्वामी की 5 या 7 इंच की पीतल की मूर्ति लेकर, शास्त्रोक्त विधि से कम से कम 7 दिन से लेकर 40 दिन तक विशेष पूजन और साधना करते हैं। यह पूजन पूर्ण होने के पश्चात यह मूर्ति आपको दी जाती है। जब आप इसे अपने घर या व्यापार स्थल पर स्थापित करते हैं और दिए गए पूजन-निर्देशों का पालन करते हैं, तो कुछ ही दिनों में अद्भुत परिवर्तन देखने को मिलता है —
घर और व्यापार से नकारात्मक ऊर्जा का नाश
कार्यों में सफलता और उन्नति
शत्रु और बाधाओं से रक्षा
परिवार में सुख, शांति और सौहार्द

यह पूजन पूर्णतः शास्त्रोक्त है और घर में श्री नृसिंह स्वामी की मूर्ति रखना किसी भी प्रकार से दोषकारी नहीं है। इसके विपरीत, यह आपकी रक्षा कवच बनकर हर संकट से बचाता है और जीवन में दिव्य आशीर्वाद लाता है।

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