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BACKGROUND
1.विद्या यक्षिणी

मंत्र:
ह्रीं वेदमातृभ्यः स्वाहा ।

लाभ: विद्या, बुद्धि और स्मरण शक्ति की वृद्धि।

2.जनरंजिनी यक्षिणी

मंत्र:
ॐ क्लीं जनरंजिनी स्वाहा ।
लाभ: सबको प्रिय बनाने और आकर्षण शक्ति।

3.घंटाकर्णी यक्षिणी

मंत्र:
ॐ पुरं क्षोभय भगवति गंभीर स्वरे क्लैं स्वाहा ।
लाभ: शत्रुओं का नाश और विजय।

4.कालकर्णी यक्षिणी

मंत्र:
ॐ क्लौं कालकर्णिके ठः ठः स्वाहा ।
लाभ: तांत्रिक बाधाओं का निवारण।

5.मदना यक्षिणी

मंत्र:
ॐ मदने मदने देवि ममालिंगय संगं देहि देहि श्रीः स्वाहा ।
लाभ: आकर्षण और वशीकरण।

6. महामाया यक्षिणी

मंत्र:
ॐ ह्रीं महामाये हुं फट् स्वाहा ।
लाभ: माया और मोहिनी शक्ति की प्राप्ति।

7. माहेन्द्री यक्षिणी

मंत्र:
ॐ ऐं क्लीं ऐन्द्रि माहेन्द्रि कुलुकुलु चुलुचुलु हंसः स्वाहा ।
लाभ: इन्द्रजाल और तेज की सिद्धि।

8. कपालिनी यक्षिणी

मंत्र:
ॐ ऐं कपालिनी ह्रां ह्रीं क्लीं क्लैं क्लौं हससकल ह्रीं फट् स्वाहा ।
लाभ: तांत्रिक सिद्धि और शत्रु पर नियंत्रण।

8. पदमिनी यक्षिणी

मंत्र:
ॐ ह्रीं आगच्छ पदमिनि वल्लभे स्वाहा ।
लाभ: वैवाहिक सुख और प्रेम।

10. मानिनी यक्षिणी

मंत्र:
ॐ ऐं मानिनि ह्रीं एहि एहि सुंदरि हस हसमिह संगमिह स्वाहा ।
लाभ: आकर्षण और वशीकरण की शक्ति।

11. मदनमेखला यक्षिणी

मंत्र:
ॐ क्रों मदनमेखले नमः स्वाहा ।
लाभ: वशीकरण और प्रियता।

12. विलासिनी यक्षिणी

मंत्र:
ॐ विरुपाक्षविलासिनी आगच्छागच्छ ह्रीं प्रिया मे भव क्लैं स्वाहा ।
लाभ: प्रेम और सौंदर्य।

13. अनुरागिणी यक्षिणी

मंत्र:
ॐ ह्रीं आगच्छानुरागिणी मैथुनप्रिये स्वाहा ।
लाभ: प्रेम और अनुराग की वृद्धि।

14. विभ्रमा यक्षिणी

मंत्र:
ॐ ह्रीं विभ्रमरुपे विभ्रमं कुरु कुरु एहि एहि भगवति स्वाहा ।
लाभ: भ्रमन और आकर्षण।

16.कुबेर यक्षिणी

मंत्र:
ॐ कुबेर यक्षिण्यै धनधान्यस्वामिन्यै धन-धान्य समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा ।
लाभ: धन, धान्य और समृद्धि की प्राप्ति।

17.चंद्रिका यक्षिणी

मंत्र:
ॐ ह्रीं चंद्रिके हंसः क्लीं स्वाहा ।
लाभ: चंद्रमा के समान शीतलता, सौंदर्य और शांति।

18.शंखिनी यक्षिणी

मंत्र:
ॐ शंखधारिणी शंखाभरणे ह्रां ह्रीं क्लीं क्लीं श्रीं स्वाहा ।
लाभ: सौभाग्य और लक्ष्मी की प्राप्ति।

19.विशाला यक्षिणी

मंत्र:
ॐ ऐं विशाले ह्रां ह्रीं क्लीं स्वाहा ।
लाभ: व्यापक यश और प्रसार।

20.श्मशानी यक्षिणी

मंत्र:
ॐ हूं ह्रीं स्फूं स्मशानवासिनि श्मशाने स्वाहा ।
लाभ: भय पर विजय और सिद्धियों की प्राप्ति।

21. भिक्षिणी यक्षिणी

मंत्र:
ॐ ऐं महानादे भीक्षिणी ह्रां ह्रीं स्वाहा ।
लाभ: योग, वैराग्य और भक्ति में वृद्धि।

22. विकला यक्षिणी

मंत्र:
ॐ विकले ऐं ह्रीं श्रीं क्लैं स्वाहा ।
लाभ: मानसिक बल और स्थिरता।

23. सुलोचना यक्षिणी

मंत्र:
ॐ क्लीं सुलोचने देवि स्वाहा ।
लाभ: आकर्षक व्यक्तित्व और सुंदरता।

24. कामेश्वरी यक्षिणी

मंत्र:
ॐ ह्रीं आगच्छ कामेश्वरि स्वाहा ।
लाभ: दाम्पत्य जीवन और प्रेम की प्राप्ति।

25. शतपत्रिका यक्षिणी

मंत्र:
ॐ ह्रां शतपत्रिके ह्रां ह्रीं श्रीं स्वाहा ।
लाभ: सुख-समृद्धि और सौभाग्य।

26. प्रमदा यक्षिणी

मंत्र:
ॐ ह्रीं प्रमदे स्वाहा ।
लाभ: जीवन में आनंद और खुशी।

27. मनोहरा यक्षिणी

मंत्र:
ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहरे स्वाहा ।
लाभ: मनमोहक व्यक्तित्व और प्रेम।

28. चंद्रद्रवा यक्षिणी

मंत्र:
ॐ ह्रीं नमश्चंद्रद्रवे कर्णाकर्णकारणे स्वाहा ।
लाभ: चंद्रमा जैसी शीतलता और शांति।

29. वट यक्षिणी

मंत्र:
ॐ एहि एहि यक्षि यक्षि महायक्षि वटवृक्ष निवासिनी शीघ्रं मे सर्व सौख्यं कुरु कुरु स्वाहा ।
लाभ: आयु, धन और सुख।

30. कनकावती यक्षिणी

मंत्र:
ॐ कनकावति मैथुनप्रिये स्वाहा ।
लाभ: प्रेम और धन-संपत्ति की वृद्धि।

15. सुरसुंदरी यक्षिणी

मंत्र:
ॐ आगच्छ सुरसुंदरि स्वाहा ।
लाभ: दिव्य सौंदर्य और आकर्षण।

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महत्वपूर्ण नोट्स (Yakshini Sadhana)

  1. यदि साधक यक्षिणी देवी को माता, बहन, पत्नी या किसी भी पारिवारिक रिश्ते से जोड़कर उस नाम से संबोधित करता है, तो उसका परिणाम स्वरूप उसकी निजी ज़िंदगी का वह संबंध समाप्त हो सकता है। यक्षिणी कभी किसी अन्य को वह स्थान नहीं देती।

  2. यक्षिणी या किसी भी साधना में किसी भी प्रकार का नशा (मादक पदार्थ) नहीं करना चाहिए। साधक का मन पवित्र, आसन शुद्ध, और आचरण सात्विक होना चाहिए।

  3. साधक को भोग-विलास से दूर रहना आवश्यक है।

  4. यक्षिणी साधना का समय रात्रिकाल है। साधक को यक्षिणी के नाम और स्वरूप के अनुसार स्थान का चयन करना चाहिए।

  5. यदि आप हवन आदि नहीं कर सकते हैं तो केवल मंत्र-जप द्वारा भी साधना की जा सकती है। मंत्र में जितने शब्द (अक्षर) हैं, उतने लाख जप करने आवश्यक होते हैं।

  6. प्रतिदिन कितने जप करने हैं, यह साधक अपनी साधना अवधि (काल) के अनुसार तय करता है।

  7. साधना को पूर्ण करने की अवधि 21 दिन, 40 दिन, 54 दिन या 108 दिन हो सकती है।

YAKSHINI SADHNA

Important Notes (Yakshini Sadhana)

  • If the practitioner addresses Yakshini Devi by relating her as a mother, sister, or wife (or by any family relation), then that corresponding relationship in their personal life may get disrupted. The Yakshini never allows anyone else to hold that sacred place.

  • In Yakshini or any kind of sadhana, the practitioner must not indulge in intoxication or substance use. The mind should remain pure, the seat (asana) clean, and conduct sattvic (virtuous).

  • The sadhak must stay away from worldly pleasures and indulgence.

  • Yakshini Sadhana is performed during the night (Ratri Kaal). The place should be chosen according to the name and nature of the Yakshini being invoked.

  • If one cannot perform havan (fire ritual), then mantra chanting alone is sufficient. The rule is that the number of lakhs of repetitions equals the number of syllables in the mantra.

  • The daily count of repetitions should be decided based on the total sadhana period chosen.

  • The complete duration of Yakshini Sadhana may be 21 days, 40 days, 54 days, or 108 days.

नोट

यक्षिणी साधना एक सात्विक देवी साधना के रूप में करनी चाहिए। यह देवी साधक की अभिलाषाओं को पूर्ण करती हैं और अत्यंत गुप्त रूप से प्रकट होती हैं। साधक हमेशा इनकी कृपा में वश रहता है। इसलिए आवश्यक है कि साधक अपने इष्ट गुरु से पूर्ण रूप से आज्ञा लेकर और उनके सान्निध्य में ही यह साधना करें। घर पर अकेले साधना नहीं करनी चाहिए। यदि घर पर साधना की जाए और बीच में साधना टूट जाए, तो यक्षिणी नाराज़ हो सकती हैं और साधक को यह भी समझ नहीं आएगा कि उसके साथ क्या घट रहा है।
इसी कारण यहाँ पर तांत्रिक विधि अथवा अघोर विधि का वर्णन नहीं किया गया है। यदि आप साधना करना चाहते हैं तो हमसे संपर्क करें या अपॉइंटमेंट लेकर मिलें, फिर उचित मार्गदर्शन में साधना करें।
यदि साधक सफलतापूर्वक यक्षिणी साधना कर लेता है तो उसे अचानक धन लाभ जैसे अवसर प्राप्त होने लगते हैं। जैसा भाव, वैसा फल—हर साधना के अच्छे और बुरे परिणाम होते हैं।

note

Yakshini Sadhana should be approached as a Satvik (pure) Devi Sadhana. The Yakshini Devi fulfills the desires of the devotee and manifests in a very secretive manner. The practitioner remains under her influence once she is pleased. Therefore, it is essential that the sadhak performs this sadhana only with the permission and guidance of their Guru, and in their presence.
It should never be performed casually at home. If the sadhana is interrupted midway at home, the Yakshini may become displeased, and the practitioner may not even realize what is happening to them.
For this reason, no Tantrik or Aghor methods are described here. If you wish to practice, you should first contact us or take an appointment to receive proper guidance.
When Yakshini Sadhana is successfully accomplished, sudden financial gains and other opportunities start appearing. As the intention, so the outcome—every sadhana has both positive and negative results.

साधना स्थल

यक्षिणी साधना घर में नहीं की जाती, इसके लिए एकांत स्थान सर्वोत्तम माने गए हैं:

वटवृक्ष के नीचे ,श्मशान भूमि  ,नदी तट प्राचीन मंदिर ,नगरद्वार या बगीचा

साधना का समय और दिशा

साधना केवल रात्रि में करनी चाहिए। साधक शुद्ध आसन पर बैठकर पश्चिम दिशा की ओर मुख करके जप करे

पूजन और जप
  • पहले भोजपत्र पर अंकित नाम/चित्र की धूप-दीप से पूजा करें।

  • इसके बाद संकल्पित संख्या में मंत्र-जप आरम्भ करें।

  • जप समाप्ति के बाद वहीं भूमि पर शयन करें।

यक्षिणी साधना का महत्व

यक्षिणियाँ अत्यंत दिव्य एवं शक्तिशाली स्वरूप रखती हैं। अपने साधक को प्रसन्न होकर वे भौतिक सुख-समृद्धि, सौंदर्य, ऐश्वर्य, प्रेम, आकर्षण और अनेक कठिन समस्याओं का समाधान प्रदान कर सकती हैं। उनकी साधना जीवन में सिद्धि, सफलता और उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है।

साधना का स्वरूप

यक्षिणी साधना सामान्य नहीं है। इसके लिए साधक को संयम, नियम और एकांत का पालन करना अनिवार्य है। आज के युग में इतनी कठिन साधना करना सभी के लिए संभव नहीं है, परंतु श्रद्धालु जन मंत्र-जप और पूजन से भी लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

स्मरण रहे – सद्विषय और कल्याणकारी उद्देश्यों हेतु की गई साधना फलदायी और सुरक्षित होती है, जबकि दुरुपयोग या अभिचार के लिए की गई साधना साधक के लिए कष्टदायी सिद्ध होती है।

साधना विधि

यदि यक्षिणी की प्रतिमा या यंत्र उपलब्ध न हो तो भोजपत्र पर अनार की कलम और लाल चंदन से यक्षिणी का नाम लिखकर उसे आसन पर प्रतिष्ठित किया जा सकता है।

साधना-काल में साधक को काम, क्रोध, असंयम से दूर रहना चाहिए।
यदि साधक ने एक लाख जप का संकल्प लिया है और प्रतिदिन 50 माला करता है, तो उसे दस दिनों में साधना पूर्ण करनी होगी।

जप पूर्ण होने पर उसी मंत्र से कम से कम 108 आहुति देकर हवन करें।
हवन सामग्री – काला तिल, घी और गुड़ का मिश्रण श्रेष्ठ है।

साधना के पश्चात एक कुमारी कन्या को भोजन, वस्त्र और दक्षिणा अवश्य दें।

साधना के दौरान यदि कोई दिव्य अनुभव हो तो उसका प्रचार न करें। उसे केवल अपने आराध्य यक्षिणी स्वरूप को ही समर्पित करना उचित है।

30 यक्षिणियाँ, उनके मंत्र और साधना लाभ

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